आधिकारिक भाषा में तो आंसूओं के पीछे का विज्ञान विस्तारपूर्वक समझाने में मुझे आनंद होगा। आपने सही तरीके से उदाहरण दिया है कि इंसान के भावनात्मक अवस्थाओं में उनके आंसू एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आपके द्वारा प्रस्तुत किए गए विचार बहुत ही गहराई से समझाते हैं कि हमारे भावनात्मक स्थितियों में कैसे आंसू हमारे अंत:करण का परिचायक होते हैं।
आंखों से आंसू बहना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जो हमारे भावनात्मक जीवन का अभिन्न हिस्सा है। आपने सही उल्लेख किया है कि खुशी के पलों में भी आंसू बह सकते हैं, जिन्हें “खुशी के आंसू” कहा जाता है। यह विज्ञानिक रूप से इसका कारण है कि आंसू हमारे शरीर में मौजूद रासायनिक पदार्थों की एक मिश्रण होते हैं, जो हमारी भावनाओं को व्यक्त करने में मदद करते हैं।
आपके प्रश्न में दिए गए संकेतों को ध्यान में रखते हुए मैंने आपके विचारों को पुनः शब्दों में प्रकट किया है, ताकि यह साफ़ और सुसंगत रहे। आपके उद्देश्य के अनुसार, आपके द्वारा प्रस्तुत किए गए विचार विचारशीलता और विवादित मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, और मैं उम्मीद करता हूँ कि आपके पाठकों को यह ज्ञानपूर्ण और सोचने पर मजबूर करने वाला होगा।
ये 2 वजह है आँसू आने की
BBC की एक रिपोर्ट के अनुसार, हंसते-हंसते रोने के पीछे 2 वजहें होती हैं। पहली वजह यह है कि जब हम खुलकर हंसते हैं, तो हमारे चेहरे की कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से काम करने लगती हैं। इसके परिणामस्वरूप, हमारी अश्रु ग्रंथियाँ (Lacrimal Glands) से भी दिमाग का नियंत्रण हट जाता है और आंसू निकल पड़ते हैं।
इमोशनल होने की वजह से निकाल आते है आँसू
इसकी दूसरी वजह यह है कि बहुत ज्यादा हंसने पर व्यक्ति इमोशनल (Emotional) हो जाता है। इमोशनल होने की वजह से चेहरे की कोशिकाओं पर पड़ने वाला दबाव बढ़ जाता है। इसके परिणामस्वरूप, आपके आंसू निकल जाते हैं। इस प्रकार, हमारा शरीर आंसूओं के माध्यम से हमारे तनाव को संतुलित करने का प्रयास करता है।
पुरुषों के मुकाबले महिलाएं होती हैं ज्यादा इमोशनल
दरअसल, यह पूरी प्रक्रिया हर शख्स के लिए अलग-अलग हो सकती है। कई लोग कम रोते हैं, तो वहीं कई लोग बहुत जल्दी भावुक हो जाते हैं। साथ ही महिला या पुरुष होने से भी इस पूरी प्रक्रिया पर फर्क आ जाता है। माना जाता है महिलाएं पुरुषों के मुकाबले ज्यादा भावुक होती हैं। ऐसे में महिलाओं के साथ हंसते-हंसते आंसू निकलने के चासेंज ज्यादा होते हैं।
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हार्मोन्स निभाता है अहम भूमिका
कम या ज्यादा भावूक होने के पीछे हमारे शरीर के हार्मोन की भी अहम भूमिका होती है। बाल्टीमोर की मैरीलैंड यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिक रॉबर्ट प्रोवाइन कहते हैं कि हंसने और रोने पर दिमाग का एक ही हिस्सा एक्टिव होता है। लगातार हंसने या रोने पर दिमाग की कोशिकाओं पर ज्यादा तनाव पड़ता है। ऐसे में शरीर में कॉर्टिसोल और एड्रिनालाइन नामक हॉर्मोन्स निकलने लगते हैं। यही हॉर्मोन्स हंसते या रोते वक्त शरीर में होने वाली विपरीत प्रतिक्रिया के लिए जिम्मेदार होते हैं।